What are the benefits of drinking buttermilk.
छाछ, मट्ठा या (Buttermilk) एक पेय है छाछ और मट्ठा एक ही है l मट्ठा की तासीर ठंडी होती है l छाछ या मट्ठा दही से बनता है। मूलत: दही को मथनी से मथकर घी निकालने के बाद बचे हुए द्रव को छाछ कहते है l यह छाछ बनाने का तरीका है l दही को मथने के लिए राइ तथा इलेक्ट्रिक मशीन का उपयोग किया जाता है l
हालाँकि छाछ की मांग पूरे वर्ष होती है, परन्तु गर्मी के समय में यह अधिक होती है क्योंकि इससे पेट और शरीर को ठण्डक मिलती है और मौसम की तीव्रता से भी बचाव होता है।
छाछ का उपयोग पीने के अलावा सब्ज़ी बनाने में किया जाता है छाछ से अनेक प्रकार के व्यंजन बनाये जाते है मुख्यता कड़ी में इसका अधिक उपयोग किया जाता है l
खाना खाने के बाद छाछ पीने के फायदे (Benefits of drinking buttermilk after a meal)
छाछ या मट्ठा शरीर से विजातीय तत्वों को बाहर निकाल कर नव-जीवन प्रदान करता है। शरीर में रोग प्रतिरोधक शक्ति उत्पन्न करता है। छाछ में थी नहीं होना चाहिए। गाय के दूध से बनी छाछ श्रेष्ठ होती है। छाछ पीने से जो रोग नष्ट होते हैं वे जीवन भर पुनः नहीं होते।
छाछ खट्टी नहीं होनी चाहिए। पेट के रोगों में छाछ कई बार पीयें। गर्मी में छाछ पीने से शरीर में ताजगी एवं तरावट आती है। नित्य नाश्ते एवं भोजन के बाद छाछ पीने से शारीरिक शक्ति बढ़ती है एवं बनी रहती है।
छाछ से कब्ज़, दस्त, पेचिश खुजली चौथे दिन आने वाला मलेरिया बुखार, तिल्ली, जलोदर, रक्तचाप (ब्लडप्रेसर की कमी या अधिकता), दमा, गठिया, अर्धागवात, गर्भाशय के रोग, मलेरिया जनित यकृत के रोग, मूत्राशय की पथरी में लाभ होता है ।
बवासीर में छाछ के फायदे (Benefits of buttermilk in piles)
एक गिलास छाछ में नमक और एक चम्मच पिसी हुई अजवाइन मिलाकर पीने से बवासीर में लाभ होता है। छाछ के उपयोग से नष्ट हुए बवासीर पुनः उत्पन्न नहीं होते। सैंधा नमक ज्यादा लाभ करता है। छाछ में सिका हुआ जीरा मिलाकर पीना भी लाभदायक है।
छाछ पीने के औषधीय गुण (Medicinal properties of buttermilk drink)
घी, तेल और मूँगफली खाने से अजीर्ण - घी, तेल, और मूँगफली अधिक खाने से अजीर्ण होने पर छाछ पीने से लाभ होता है।
कृमि - गाय की छाछ में नमक मिलाकर प्रातः पीने से कृमि मर जाते हैं।
शक्तिवर्धक - छाछ पीने से स्रोतों, मार्गों की शुद्धि होकर रस का भली-भाँति संचार होने लगता है। आँतों से सम्बन्धित कोई रोग नहीं होता। नियमित छाछ पीने से शरीर की पुष्टि, प्रसन्नता, बल, कान्ति, ओज की वृद्धि होती है। पिसी हुई अजवाइन, सैंधा नमक, छाछतीनों मिलाकर भोजन के अन्त में नित्य कुछ दिन पीने से बहुत लाभ होता है, यह अच्छी न लगे तो छाछ में काली मिर्च और नमक मिलाकर भी पी सकते हैं।
दस्त - आधा पाव छाछ में एक चम्मच शहद मिलाकर 3 बार नित्य पीने से दस्त बन्द हो जाते हैं।
काले बाल - छाछ से बाल धोने से तथा पीने से बाल असमय में सफेद नहीं होते। छाछ दही से ही बनता है छाछ का सेवन बालों के लिए हितकारी है
काले बाल - छाछ से बाल धोने से तथा पीने से बाल असमय में सफेद नहीं होते। छाछ दही से ही बनता है छाछ का सेवन बालों के लिए हितकारी है
नशा भाँग का - भाँग का नशा खट्टी छाछ पीने से उतर जाता हैं।
दाँत निकलना - छोटे बच्चों को नित्य छाछ पिलाने से दाँत निकलने में कष्ट नहीं होता और दाँतों का रोग भी नहीं होता।
मोटापा काम करना - मोटापा छाछ पीने से कम होता है। क्योंकि छाछ में चिकनाई नहीं होती है l
पेट दर्द भूखे होने पर हो तो छाछ पीने से यह दर्द ठीक हो जाता है।
अपच - अपच के लिए छाछ एक ओषधि है। तली भुनी, गरिष्ठ चीजों को पचाने में छाछ लाभदायक है। छाछ आँतों में स्वास्थ्यवर्धक कीटाणुओं की वृद्धि करती है, आँतों में सड़ाँध रोकती है। छाछ में सैंधा नमक, भुना हुआ जीरा, काली मिर्च पीसकर मिलायें, अजीर्ण शीघ्र ठीक हो जायेगा।
छाछ पीने के नुकसान, सावधानियाँ (Disadvantages of drinking buttermilk)
क्षत विक्षत दुर्बलों तथा बेहोशी, भ्रम और रक्तपित्त के रोगियों को गर्मियों मेंमट्ठा का सेवन नहीं करना चाहिए। यदि चोट लगने से घाव पड़ गया हो, जख्म हो गया हो, सूजन आ गई हो, शरीर सूखकर कमजोर हो गया हो तथा जिन्हें बेहोशी, भ्रम या तृषा रोग हो यदि वे मट्ठा का सेवन करें तो कई अन्य रोग होने की संभावना रहती है।
सावधानियाँ
छाछ को पीतल, तांबे व कांसे के बर्तन में न रखे। इन धातु से बनने बर्तनों में छाछ दही, या किसी भी प्रकार की खटाई रखने से जहर समान हो जाती है। हमें कांच या मिट्टी के बर्तन का ही प्रयोग करें। मिट्टी के बर्तन में रखने से छाछ के गुण बढ़ जाते है l ये बर्तन घर पर न हो तो स्टील में भी रख सकते है l
1. दही को जमाने में मिट्टी से बने बर्तन का प्रयोग करना उत्तम रहता है।
2. वर्षा काल में दही या मट्ठे का प्रयोग न करें।
3. भोजन के बाद दही सेवन न करें, दही के बजाय छाछ का सेवन अवश्य करें।
4. बदन दर्द, जुकाम, तेज बुखार अथवा जोड़ों के दर्द में मट्ठा नहीं लेना चाहिए।
5. क्षय ( फेफड़े से सम्बंधित रोग) रोगी को मट्ठा नहीं लेना चाहिए।
6. यदि कोई व्यक्ति बाहर से ज्यादा थक कर आया हो, तो तुरंत दही या मट्ठा न लें।
7. दही या मट्ठा कभी बासी नहीं खाना चाहिए क्योंकि इसकी खटास आंतो को नुकसान पहुंचाती है। इसके कारण से खांसी आने लगती है।
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